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ज़मीं जड़ों की तलाश में

4.8
1925
पोएम

ज़मीं जंड़ों की तलाश में अपने जंमी जड़ों की तलाश में हम, हमारे पाँवों, तले की ज़मीन खिसक गई, कारवाँ उजड़ गया , गुलिस्ताँ बिखर गया । जंमी के मालिक को ज़माना निगल गया हमारे पाँवों तले की जंमी, सरजंमी ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    23 अक्टूबर 2015
    राष्ट्र भाषा का पूर्ण अनुसरण न करती नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
  • author
    Er Pragati Rai
    03 जून 2018
    Very nyc
  • author
    richa rai
    12 अक्टूबर 2015
    bahut sundar
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    23 अक्टूबर 2015
    राष्ट्र भाषा का पूर्ण अनुसरण न करती नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
  • author
    Er Pragati Rai
    03 जून 2018
    Very nyc
  • author
    richa rai
    12 अक्टूबर 2015
    bahut sundar