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फिर क्यों आई हो ?

4.3
5686

हास्य व्यंग्य - फिर क्यों आई हो ? बार-बार इनकार करने पर भी पीछा नहीं छोड़ती, तुम समय व स्थान का भी अनुमान नहीं लगाती, कब कौन कहाँ कैसी भी अवस्था में हो तुम तपाक से आ जाती हो। लाख मना करने पर भी ...

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लेखक के बारे में

पिता का नाम- स्व. श्री मिश्री लाल काबरा जन्म तिथि- 18 मार्च 1936 योग्यता- एम.ए. बी.एड साहित्य रत्न निवास स्थान ग्राम- आगूचा जिला-भीलवाडा( राजस्थान) व्यवसाय- सेवानिवृत्त जिला शिक्षा अधिकारी शिक्षा सेवा- राजकीय - 26 वर्ष निजी संस्थाए- 10 वर्ष सेवा निवृत्ति 31 मार्च 1994 पुरस्कार- 1. श्रेष्ठ परीक्षा परिणाम में जिला स्तर पर कई बार सम्मानित। 2. माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय पत्र वाचन पत्रियोगिता में राज्य स्तर पर द्वितीय स्थान। 3. जिला यूनेस्को फेडरेशन द्वारा हिन्दी सौरभ सम्मान प्राप्त। 4. विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ भागलपुर (बिहार) विद्यावाचस्पति की उपाधि से विभुषित। 5. साहित्य मण्डल नाथद्वारा, राजस्थान द्वारा साहित्य भूषण की उपाधि से सम्मानित। साहित्य सेवा- 1. माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित सैकण्डरी कक्षाओं के अनिवार्य हिन्दी के लिए एकांकी सुषमा का सम्पादन। 2. ‘‘यादों के झरोखे से ’’ पुस्तक का लेखन। पत्रिकाएं जिनमें रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। श्री माहेश्वरी टाइम्स, केन्द्र भारती, निरामय जीवन, प्रेरणा अंशु, अदबनामा, प्राची प्रतिभा, सुरभि समग्र, रुचिर संस्कार, अध्यात्म अमृत, शिक्षक प्रभा, भक्ति ज्योति, मधुमति, साक्षात्कार, साहित्य निधि, साहित्यांचल, मोमदीप, मरु गुलशन, एक रोटी, शब्द सामयिकी, हिन्दी ज्योति बिंब, माहेश्वरी, समाज धर्म, शिविरा, कल्याण, तमिल साहित्य, नूतन भाषा सेतु, प्रतियोगिता दर्पण, प्रभावित, नवज्योति, राजस्थान पत्रिका, शिक्षा दर्शन, बुलन्द राहें, समाज प्रवाह, बाल वाटिका, बोर्ड शिक्षण पत्रिका, शिविभी, विश्वविधायक, गिरीराज, हिमप्रस्थ, ज्ञान विज्ञान बुलेटिन, बाल प्रहरी, दिवान मेरा, साहित्यायन, पाथेय कण, हिन्दी प्रचार वाणी, वीणा, नवल, नया कारवां, सदीनामा, आरोग्य, साहित्य समीर दस्तक, प्रोत्साहन, उपनिधि, मानस स्तम्भ, जनप्रवाह, सौगात, पूर्वी प्रकाश, गीता से जुडे़, भिलाई वाणी,विचार नवनीत, नये क्षितिज, नव निकष, कौशिकी, तामिलनाड बुलेटिन, युग पक्ष, कल्याणिका, पंचायतन, पहुँच, कुसुम, समाज कल्याण, वर्तमान हलचल, लल्लु जगधर, साहित्य प्रोत्साहन, भाग्य दर्पण, नया भाषा भारती संवाद, अभिनव प्रयास, राष्ट्र किंकर, शुभतारिका, पँखुड़ी, राष्ट्र समर्पण, बुधवार, मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद् पत्रिका, साहित्याजंलि प्रभा, सुजस, ब्राह्नण अन्तर्राष्ट्रीय समाचार आदि। पुस्तक समीक्षा- लगभग 10 पुस्तकों की समीक्षाएं समीक्षा पत्रिका एवं बोर्ड शिक्षण पत्रिका में प्रकाशित हुई। समाज सेवा- गौ सेवा के क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी, शिक्षण संस्थाओं में निशुल्क सेवा प्रदान करना, जरुरत मंद रोगियों के लिए आवश्यकता होने पर रक्त उपलब्ध करवा कर जीवन रक्षा करना। सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिये ब्लड हेल्पलाइन का संचालन। अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा के कार्यकारी सदस्य के रूप में कार्य किया तथा माहेश्वरी पत्रिका, नागपुर के सम्पादन हेतु सलाहकार समिति का संयोजक रह कर कार्य किया।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Shubham Kumar
    24 एप्रिल 2018
    बहुत सुंदर। अंत तक अलग अलग चीजे सोचता रहा लेकिन निकला क्या ? पढ़ने का रोमांच बना ही रहा। साधुवाद _/\_
  • author
    Smita Jain
    18 सप्टेंबर 2019
    nice story.. आरम्भ की दो पंक्तियाँ पढते ही समझ आ गई थी क्योंकि क ई वर्ष पूर्व मैने भी कुछ इसी प्रकार की कविता लिखी थी ।और मैं सबको अपने सामने पढवाती थी और उनके चेहरे पर आते जाते रंग देखती थी । और अंत जानने पर उनकी प्रतिक्रिया का आनंद उठाती थी
  • author
    Alok Natekar
    18 सप्टेंबर 2019
    बहुत सुंदर प्रस्तुति , शुरू में कहीं लगा शायद छींक हो पर आगे एक डेढ़ मिनट बाद पक्का हो गया कि नींद की बात हो रही है ।पर अंत तक पढ़ता गया क्योंकि रोचकता बनी हुई थी और उत्सुकता भी कि कितनी उपमाएं दी हैं आपने देखें तो सही। बहुत खूब ।🌹👍👍
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    Shubham Kumar
    24 एप्रिल 2018
    बहुत सुंदर। अंत तक अलग अलग चीजे सोचता रहा लेकिन निकला क्या ? पढ़ने का रोमांच बना ही रहा। साधुवाद _/\_
  • author
    Smita Jain
    18 सप्टेंबर 2019
    nice story.. आरम्भ की दो पंक्तियाँ पढते ही समझ आ गई थी क्योंकि क ई वर्ष पूर्व मैने भी कुछ इसी प्रकार की कविता लिखी थी ।और मैं सबको अपने सामने पढवाती थी और उनके चेहरे पर आते जाते रंग देखती थी । और अंत जानने पर उनकी प्रतिक्रिया का आनंद उठाती थी
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    Alok Natekar
    18 सप्टेंबर 2019
    बहुत सुंदर प्रस्तुति , शुरू में कहीं लगा शायद छींक हो पर आगे एक डेढ़ मिनट बाद पक्का हो गया कि नींद की बात हो रही है ।पर अंत तक पढ़ता गया क्योंकि रोचकता बनी हुई थी और उत्सुकता भी कि कितनी उपमाएं दी हैं आपने देखें तो सही। बहुत खूब ।🌹👍👍