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कोर्ट रूम

4.3
9595

कोर्ट रूम में सन्नाटा सा छा गया।उस सन्नाटे को यदि कोई आवाज़ तोड़ रही थी तो वो थी उसके रुदन और सिसकियों की। बयान देते देते वो फूट फूट कर रो पड़ा।उसके हर शब्द से उसकी बेबसी,उसका आक्रोश उसकी पीड़ा छलक ...

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लेखक के बारे में
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नीता राठौर

नीता राठौर .... केवल फॉलो न करें बल्कि अपनी प्रतिक्रियाएं भी दें। आप की अमूल्य प्रतिक्रियाएं, आलोचना, समालोचना, सराहना, प्रोत्साहन ही मुझे नव सृजन के लिए प्रेरित करता है।

समीक्षा
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  • author
    Sunny
    28 డిసెంబరు 2017
    Very nice story...Humaari life puri tarah se humare parrents prr depend karti hai Akelapan! jise koi nhi samjhta,,, aur samjhe bhi toh kaise koi esa ho jo care kare toh naa... Ese me i think khud k liye motivator banna padta hai warna hum apni life ki value kho dete hn aur ussi raah ko apna lete hain jisme khushi mile chahe woh sahi ho ya ghalat.... Mjhe story ki utni samajh nhi but bahot hi achhe dhang se प्रस्तुत की गई कहानी।
  • author
    13 జులై 2016
    कच्ची उम्र पर पारिवारिक बिखराव के दुष्प्रभाव को रेखांकित करती कहानी, एक चेतावनी भी है सामाजिक ताने बाने की सधनता का पैमाना कैसा हो ! अभिभावकों को सोचना चाहिए कि उनके आपसी अन्तर द्वन्द्व का प्रभाव पाल्य पर न पड़े।
  • author
    Kumar Devashish
    24 జనవరి 2019
    अच्छा प्रयास , अच्छी अभिव्यक्ति...... लेकिन कहानी में बहुत ज़्यादा विचार लेखक की तरफ से आने से रोचकता कम हो जाती है। प्रेमचंद की कहानियों से प्रेरणा ले जिसमे सार-तत्व सिर्फ एक या दो पंक्ति के होते है। आगे अपना अलग सलीका होता है हर लेखक का, सो ये भी ठीक है। मै लेख़क नही इसलिए मेरी बातों को अन्यथा न ले।
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    Sunny
    28 డిసెంబరు 2017
    Very nice story...Humaari life puri tarah se humare parrents prr depend karti hai Akelapan! jise koi nhi samjhta,,, aur samjhe bhi toh kaise koi esa ho jo care kare toh naa... Ese me i think khud k liye motivator banna padta hai warna hum apni life ki value kho dete hn aur ussi raah ko apna lete hain jisme khushi mile chahe woh sahi ho ya ghalat.... Mjhe story ki utni samajh nhi but bahot hi achhe dhang se प्रस्तुत की गई कहानी।
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    13 జులై 2016
    कच्ची उम्र पर पारिवारिक बिखराव के दुष्प्रभाव को रेखांकित करती कहानी, एक चेतावनी भी है सामाजिक ताने बाने की सधनता का पैमाना कैसा हो ! अभिभावकों को सोचना चाहिए कि उनके आपसी अन्तर द्वन्द्व का प्रभाव पाल्य पर न पड़े।
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    Kumar Devashish
    24 జనవరి 2019
    अच्छा प्रयास , अच्छी अभिव्यक्ति...... लेकिन कहानी में बहुत ज़्यादा विचार लेखक की तरफ से आने से रोचकता कम हो जाती है। प्रेमचंद की कहानियों से प्रेरणा ले जिसमे सार-तत्व सिर्फ एक या दो पंक्ति के होते है। आगे अपना अलग सलीका होता है हर लेखक का, सो ये भी ठीक है। मै लेख़क नही इसलिए मेरी बातों को अन्यथा न ले।