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भोज का बोझ

4.4
7640

रामकली इक्यासी वर्ष की हो चली थी। बुढ़ापे का शरीर शनैः शनैः कमजोर हो ही जाता है। तिस पर सितम अगर बीमारी ढाए तो कृषकाय होना लाजिमी है। सो उसकी हालत हो रही थी। दो -दो पूत थे। वह छोटे बेटे के साथ रह ...

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लेखक के बारे में
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वीना सिंह

स्वतंत्र लेखिका प्रकाशन - शोध ग्रंथ - लोक साहित्य, विभिन्न हिंदी पाठ्य पुस्तकें,, व्याकरण कक्षा १-८, 7 साझा काव्य संकलन , 7 साझा लघु कथा संग्रह लेख आदि प्रकाशन- भाषा भारती, नवपल्लव , शब्द सुमन , सिनर्जी ,हरि गंधा, हिमालिनी, जगमगदीप ज्योति, मधु संबोध, साहित्य कलश आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख, कहानियाँ, कविताएँ आदि सम्मान- विविन्न संस्थाओं द्वारा साहित्य सेवा व हिंदी सेवा सम्मान आदि.आदर्श राष्ट्रभाषा शिक्षक पुरस्कार, राष्ट्र रत्न सम्मान, श्रेष्ठ लघुकथाकार सम्मान आदि|

समीक्षा
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  • author
    Sangeet Singh
    15 मई 2019
    kash ki..ki ye log maa ko mrne hi na dete.kash whi paise inke jeene k liye kharch krte...😒...
  • author
    Sutapa Sen
    30 जुलाई 2018
    bate bahu sayad amrit pe ker aye hai ye log to Bude hi nahi honge
  • author
    Komal Patel
    08 फ़रवरी 2020
    इस दुनिया मे कोई अमर नहीं है बेटा बहु भूल गए के उनके भी ऐसे ही दिन आएंगे..... 👌👌👌👌👌
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    Sangeet Singh
    15 मई 2019
    kash ki..ki ye log maa ko mrne hi na dete.kash whi paise inke jeene k liye kharch krte...😒...
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    Sutapa Sen
    30 जुलाई 2018
    bate bahu sayad amrit pe ker aye hai ye log to Bude hi nahi honge
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    Komal Patel
    08 फ़रवरी 2020
    इस दुनिया मे कोई अमर नहीं है बेटा बहु भूल गए के उनके भी ऐसे ही दिन आएंगे..... 👌👌👌👌👌