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बागीचे की चीखें

4.3
15661

इस बागीचे में रात के साढ़े तीन बजे दो चीखें हवा को चीरती हुए, सन्नाटे को बेधती हुई हर अमावश्या की रात के ठीक पहले वाली रात सुनाई देती है । एक चीख लम्बे - लम्बे घास से सरसराती हुई बागीचे के उत्तर ...

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लेखक के बारे में

टाटा स्टील में ३९ साल इस्पात के उत्पादन विभाग में काम करते हुए पिघलते पसीने के बीच भी अगर साहित्य - सृजन की अकुलाहट को जिन्दा रखने में सफल हो पाया हूँ तो यह सरस्वती माँ की कृपा और आप सबों के स्नेह के कारण ही हो सका है। यही मेरा परिचय भी है और उपलब्धि भी। वर्ष 1973 – 74 में जेपी आंदोलन में अगुआई, जेपी के तरुण शांति सेना के सिपाही बने । आपातकाल के दौरान वारंट जारी होने के कारण भूमिगत होना पड़ा । उसी समय 1975 जनवरी से टाटा स्टील में साक्षात्कार में चयनित होकर नौकरी शुरू की। 16 साल उत्पादन विभागों में तथा 19 साल तक योजना विभाग में कार्यरत । नौकरी के दरम्यान ही इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़मेटल्स, कोलकता से मेतल्लुर्गी*(धातुकी) में इंजीनियरिंग , इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (IGNOU) से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मार्केटिंग मैनेजमेंट। टाटा स्टील के इन हाउस मैगजीन में कई टेक्निकल पेपर प्रकाशित। अपने योजना विभाग में इन हाउस ट्रेनिंग कार्यक्रम के तहत 'ज्ञानअर्जन' सेशन का आयोजन, योजना विभाग के ट्रेनिंग गाइड का प्रकाशन। जनवरी 2014 से सेवानिवृति के बाद हिन्दी साहित्य की सेवा का संकल्प । विद्यार्थी जीवन में कॉलेज की मैगजीन में हिन्दी कविताओं का प्रकाशन । उससमय पटना से प्रकाशित अख़बार आर्यावर्त, इंडियन नेशन, प्रदीप तथा सर्चलाईट में कविता तथा लेखों का प्रकाशन । जेपी आंदोलन के समय जेपी के विद्यार्थी एवं युवाशाखा के वाराणसी से प्रकाशित मुख्यपत्र ' तरुणमन ' में लेखों का लगातार प्रकाशन । वर्ष 2005 से 2007 के बीच गया में मानस चेतना समिति के मुख्यपत्र ' चेतना ' में कविता एवं लेखों का प्रकाशन। हिन्दी साहित्य के लिए कुछ कर सकने की जिद ने सृजन के लिए प्रेरित किया। अपना ब्लॉग marmagyanet.blogspot.com में ब्लॉग लेखन। 2015 में कहानी संग्रह "छाँव का सुख" हिन्द युग्म दिल्ली से प्रकाशित। 2018 जनवरी में उपन्यास "डिवाइड़र पर कॉलेज जंक्शन" भी हिंद युग्म से प्रकाशित। वर्तमान में सिंहभूम हिन्दी सहित्य सम्मेलन, जमशेदपुर और अखिल भारतीय साहित्य परिषद् से सक्रिय रूप से जुड़े हैं। यू टयूब चैन्नेल marmagya net पर मेरे काव्य पाठ को देख और सुन सकते हैं। काव्यात्मक परिचय : 1975 से टाटा स्टील का साथ। कर्मक्षेत्र जमशेदपुर, जन्म स्थान गया विहार। रहता हूँ मानगो संजय पथ। सेवा निवृत्त होकर, सात साल पूर्व। साहित्य सेवा में बीतता है वक्त, तीन पुस्तकें दिल्ली से प्रकाशित "छाँव का सुख" कहानी संग्रह, "डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" उपन्यास और "तुम्हारे झूठ से प्यार है" कहानी संग्रह. अमेज़न किंडल पर "कौंध" कविता संग्रह। "आई लव योर लाइज" कहानी संग्रह। "ताज होटल गेटवे ऑफ इंडिया" लघु उपन्यास, "छूटता छोर अंतिम मोड़", "कोरोना कनेक्शन"  उपन्यास। वेबसाइट हिंदी प्रतिलिपि पर कहानियाँ और धारावाहिक उपन्यास प्रकाशित। अपना ब्लॉग मर्मज्ञानेट. ब्लॉग्स्पॉट, अपना यूट्यूब मर्मज्ञानेट। पिछले दो  वर्षों से अखिल भारतीय साहित्य परिषद, पेड़ों की छांव तले रचना पाठ वैशाली दिल्ली एन सी आर, ने दिया हमारी साहित्य विधा को आकाश, सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मलेन, तुलसी भवन, जमशेदपुर से पाँच  वर्षों से रहा है जुड़ाव, जहाँ हुआ है मेरी साहित्यिक प्रतिभा  का विकास। यही है मेरा जीवन का संचय, और इसे ही समझें मेरा आत्म परिचय।

समीक्षा
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    23 मार्च 2018
    यथार्थ रचना ।। मेरी दादी एक कहावत सुनाया करती थी,जो की अपने समाज का भयावक सच है - गरीब की लुगाई , पुरे गांव की लुगाई - ख़ास कर उन लुच्चे - लफंगो के लिए जो केवल पैतृक संपित पर वैतरणी नदी पार कर रहे है ।। हमारे समाज में चारो - तरफ ऐसे कई सरे अंधे - कुएँ है जहाँ पर न जाने कितने नैना की चींखे दबी है ।। आज भी हम न जाने कितने रूढ़वादिये से घिरे है , फिर भी हम खुद को उसमे ही सिमटे हुए है। अपने समाज को, अपनों को छल कर,अपने बल को प्रदर्शित करने की योजना करते है ।। शशांक मिश्रा "प्रिय"
  • author
    BEPARWAH
    04 मई 2018
    उत्कृष्ट 👍 मान्यवर जी बहुत ही सुंदर रचना है। मैं प्रतिलिपि पर अपने शरुआती दौर में हूं कृपया एक बार मेरी रचनाएं भी अवश्य देखें आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। महाशय जी कृपया मेरी रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देकर मेरा उचित मार्गदर्शन करें ।
  • author
    MAHI ,MAHI
    23 दिसम्बर 2019
    यह समाज की वह भयावह सच्चाई है जो पहले भी चलती आई थी और आज भी चल रही है।अगर कोई गरीब इसके खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश भी करता है तो उसकी आवाज भी दबा दी जाती है और हम सिर्फ मूकदर्शक बनकर रह जाते हैं।
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    23 मार्च 2018
    यथार्थ रचना ।। मेरी दादी एक कहावत सुनाया करती थी,जो की अपने समाज का भयावक सच है - गरीब की लुगाई , पुरे गांव की लुगाई - ख़ास कर उन लुच्चे - लफंगो के लिए जो केवल पैतृक संपित पर वैतरणी नदी पार कर रहे है ।। हमारे समाज में चारो - तरफ ऐसे कई सरे अंधे - कुएँ है जहाँ पर न जाने कितने नैना की चींखे दबी है ।। आज भी हम न जाने कितने रूढ़वादिये से घिरे है , फिर भी हम खुद को उसमे ही सिमटे हुए है। अपने समाज को, अपनों को छल कर,अपने बल को प्रदर्शित करने की योजना करते है ।। शशांक मिश्रा "प्रिय"
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    BEPARWAH
    04 मई 2018
    उत्कृष्ट 👍 मान्यवर जी बहुत ही सुंदर रचना है। मैं प्रतिलिपि पर अपने शरुआती दौर में हूं कृपया एक बार मेरी रचनाएं भी अवश्य देखें आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। महाशय जी कृपया मेरी रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देकर मेरा उचित मार्गदर्शन करें ।
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    MAHI ,MAHI
    23 दिसम्बर 2019
    यह समाज की वह भयावह सच्चाई है जो पहले भी चलती आई थी और आज भी चल रही है।अगर कोई गरीब इसके खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश भी करता है तो उसकी आवाज भी दबा दी जाती है और हम सिर्फ मूकदर्शक बनकर रह जाते हैं।