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आर्मी मैन

4.3
14134

(कहानी: यदु जोशी) आर्मी से सेवानिवृत होकर बाबूजी गाँव में रम गए. दैवयोग से कुछ साल और बीते थे कि अम्मा गुजर गई. बाबूजी अवसाद की विकट स्थिति से किसी तरह उबर गए. जब कभी मन होता तो मेरे पास दिल्ली ...

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लेखक के बारे में
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यदु जोशी

देश की प्रमुख पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Reena Sharma
    25 सितम्बर 2018
    Bahut acchi
  • author
    27 अप्रैल 2019
    अच्छी कहानी!...लेकिन नायक की सोच जहाँ एक ओर यह है कि बुज़ुर्गों का दिल नहीं दुखाया जाना चाहिए वहीं वह पिता के साथ वार्तालाप में तल्खी व अवज्ञा का भाव भी रखता है, भले ही वह युक्तिसंगत बात कर रहा होता है । इस तरह नायक का दोहरा चरित्र उजागर होता है जो पाठक के रूप में मुझे कुछ अखरा।
  • author
    Puja Thakur
    19 फ़रवरी 2019
    वाह !सुन्दर रचना ।
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    Reena Sharma
    25 सितम्बर 2018
    Bahut acchi
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    27 अप्रैल 2019
    अच्छी कहानी!...लेकिन नायक की सोच जहाँ एक ओर यह है कि बुज़ुर्गों का दिल नहीं दुखाया जाना चाहिए वहीं वह पिता के साथ वार्तालाप में तल्खी व अवज्ञा का भाव भी रखता है, भले ही वह युक्तिसंगत बात कर रहा होता है । इस तरह नायक का दोहरा चरित्र उजागर होता है जो पाठक के रूप में मुझे कुछ अखरा।
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    Puja Thakur
    19 फ़रवरी 2019
    वाह !सुन्दर रचना ।