(कहानी: यदु जोशी) आर्मी से सेवानिवृत होकर बाबूजी गाँव में रम गए. दैवयोग से कुछ साल और बीते थे कि अम्मा गुजर गई. बाबूजी अवसाद की विकट स्थिति से किसी तरह उबर गए. जब कभी मन होता तो मेरे पास दिल्ली ...
अच्छी कहानी!...लेकिन नायक की सोच जहाँ एक ओर यह है कि बुज़ुर्गों का दिल नहीं दुखाया जाना चाहिए वहीं वह पिता के साथ वार्तालाप में तल्खी व अवज्ञा का भाव भी रखता है, भले ही वह युक्तिसंगत बात कर रहा होता है । इस तरह नायक का दोहरा चरित्र उजागर होता है जो पाठक के रूप में मुझे कुछ अखरा।
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अच्छी कहानी!...लेकिन नायक की सोच जहाँ एक ओर यह है कि बुज़ुर्गों का दिल नहीं दुखाया जाना चाहिए वहीं वह पिता के साथ वार्तालाप में तल्खी व अवज्ञा का भाव भी रखता है, भले ही वह युक्तिसंगत बात कर रहा होता है । इस तरह नायक का दोहरा चरित्र उजागर होता है जो पाठक के रूप में मुझे कुछ अखरा।
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