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बरगद की चुड़ैल #ओंवुमनिया

4.6
853

कोख़ में पाला था उसने और ...रात दिन जागी भी थी....सब कहते पगली थी...! जब भी उस बरगद के तिराहे से निकलता था बस उसको गंदे और फटे कपड़ों में विशाल बरगद के नीचे बने मंदिर के बरामदे में पाया। मां के ...

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लेखक के बारे में
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Saumya Jauhari
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    13 ਮਾਰਚ 2019
    क्या बात है मैम बहुत सुंदर शब्द नहीं है मेरे पास रचना की तारीफ में कुछ कहने के लिए
  • author
    Neelima Mishra "प्रेम"
    15 ਮਾਰਚ 2019
    बेहद मार्मिक,,, माँ का रिश्ता हर रूप में अनूठा है
  • author
    13 ਮਾਰਚ 2019
    है रिस्तो की डोर माँ के आँचल से .....
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    13 ਮਾਰਚ 2019
    क्या बात है मैम बहुत सुंदर शब्द नहीं है मेरे पास रचना की तारीफ में कुछ कहने के लिए
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    Neelima Mishra "प्रेम"
    15 ਮਾਰਚ 2019
    बेहद मार्मिक,,, माँ का रिश्ता हर रूप में अनूठा है
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    13 ਮਾਰਚ 2019
    है रिस्तो की डोर माँ के आँचल से .....