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हरे पत्ते खुशकिस्मत हैं रात की नमी में उन्हें दुलारती ओस की बूंदें जब उन पर गिरती हैं वे और निखर आते हैं ....... बात करें उन पीले पत्तों की ओस की बूंदों की नमी से भी जो हरिया नहीं पाते और शाख से ...
अभिच आय हौं कालाहांडी ले, मन रहिसे कुछु दिन रहि जात्यों ,गोठियात्यों,थुरकुन सुरतातेओं। घनि घनि बन भीतर महमहाई फूल मन औ महु हां, ओखर महक मां भुला जात्यों। जाते सार देख्यों ,टूटे छानी वाला भुईंयां मां ...
मेरे मन के कोने में इक गीत कब से दबा हुआ है सुना है जल से भरे खेतों में रोपे जाते धान के पौधों की कतार से होकर गुजरता था गीत बौर से लदी आम की डाल पर बैठी कोयल के कंठ से होकर गुजरता ...
तुम्हारा हाथ थामे मैं सागर से घिरे महानगर में अपनी ज़मीन तलाशती रही कैसे आ जाती है नदी सागर तक चट्टानें,कन्दरा,शूलों को पार कर कैसे चाँद को छूने की कोशिश में लहरें जी जान लगा देती हैं कैसे छू लेता ...
रात के 11 बज रहे थे। लगा सड़क पर कोई तेजी से दौड़ रहा है। रात के सन्नाटे में आवाज़ भय पैदा कर रही थी। आवाज़ नजदीक आती गई। मेरा दरवाजा कोई ज़ोर ज़ोर से पीट रहा था। साथ में दबी घुटी सी आवाज़ आई - ”दी, दरवाजा ...
इश्क दुआ बन जाता है जब सहेज लेता है कोई ढाई अक्षर की इबारत दिल की किताब पर संवर उठती है कायनात सूरज के लाल दरवाजे तक तोरने बंध जाती हैं ढोलक पर गाए जाते हैं गीत अनंत जन्मों के ...
वह् टीवी के एक विज्ञापन में आँखें नचाती एक लड़की को देखकर मुस्करा उठती है , जो अपने भाई को राखी बाँधने के बाद ठसक के साथ कह रही है``मुझे अपनी चॉकलेट की व अपनी रक्षा करना आता है .`` तब लड़कियां ऎसा ...
सूने कमरों में बेमतलब चक्कर लगाना, बार-बार माँ की चीजों को छूना, रसोई घर में बिसूरते मसाले के डिब्बों, बर्तनों को माँ के बिना देखने की पीड़ा इतनी अधिक चुभन भरी थी कि मैं काँच सी बार बार टूट कर झनझनाती ...
एक बीस बरस पुराना घर था। वहाँ चालीस बरस पुरानी एक औरत थी। उसके चेहरे पर घर जितनी ही पुरानी लकीरें थीं। तब वह एक खूबसूरत घर हुआ करता था। घर के कोनों में हरे-भरे पौधे और पीतल के नक़्क़ाशीदार कलश थे। एक ...
वो था बादल का फटना या रंजिश कोई ज़र्रा ज़र्रा ज़मी वो डुबोता रहा वो घनेरी लताएँ गगन चूमते उन पहाडों के बाँके शज़र अब न आते नज़र हद कि नज़रों में बस है उफनता,मचलता लील जाने पे आमादा सैलाब बस हाँ कि सैलाब बस ...
वह सुबह भी और सुबहों की तरह एक आम सुबह थी लेकिन अमलतास के घने दरख्तों की डालियों को पार करता सूरज जब घंटाघर की ऐन बुर्जी पर था तो वह सुबह खास हो गई| शहर में दंगा भड़क गया| एक हिन्दू लड़की उषा भार्गव और ...
एक पहाड़ी नदी के बीच बड़े से पत्थर पर बैठा हूँ। सरिता, मेरे सामने एक छोटे पत्थर पर बैठी मुस्करा रही है। उसके गोरे सुडौल पैर पत्थरों के बीच से कलकल करती बहती पतली जलधारा से अठखेलियाँ कर रहे हैं। ढलती ...
``म-----छ -----ली ज------ल की रा---नी है -----अच्छा मम्मी बताइये जल क्या होता है ?`` ``धत् 1कितने दिन से कविता गा रहा है ,अभी तक तुझे ये नही पता कि `जल `क्या होता है ?`` ``सच नही पता .`` ``जरा सोचो ...
प्रिय यशी हाय ! कैसी हो ? हम लोग मेल से , मोबाइल से व एप्स से कितनी बातें करते रहते थे और हमारे बीच लंबा मौन बिछ गया .मै जानती हूँ कि तुम मुझसे बहुत बहुत नाराज होगी और अचानक ये रजिस्टर्ड पत्र ...
इस कहानी के नायक कालीचरण माथुर, जो खुद को के.सी. माथुर कहना पसंद करता है, में ऐसा एक भी गुण नहीं कि उसे नायक का दर्जा दिया जाये। लेकिन इसमें मैं क्या कर सकता हूं कि जो कहानी मैं लिखने जा रहा हूं वह ...