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गर्व से कि शर्म से ! कुछ तो ऐसा करें कि गर्व करें कुछ न ऐसा करें कि शर्म करें लोग अब भी हैं बहुत अजाने से सच्चाई जानने का मर्म करें रास्ते बंद नहीं और भी हैं दो कदम और चलने ...
कोई तड़के सुबह तो कोई दिन चढ़े जगा है मगर जगा हर कोई है हर घर, हर मुहल्ला हर गाँव, हर शहर जगा है हर झील, हर तालाब हर नदी, हर समुद्र जगा है रात बीताकर सिर्फ हम ही नहीं जगे अपने अँधेरे की चादर और इत उत ...
दूर से हांफते हुए आते बच्चे ने सरकारी नल से पी सकने जितना पानी पिया और गीले हाथों में सिमट आई खुशियों को मल लिया मैली कमीज़ पर--। कूड़े की ट्रॉली में भरते हुए पिज्जा के खाली डिब्बे और प्लास्टिक के ...
लगता है कभी कभी बदल गयी हूँ मैं मेरे अन्दर की औरत ...... उंहूं....कुछ और मत समझना हकीकत के आइनों में नज़र नहीं आयेंगे जवाब और जो लिखा होगा वो पढ़ नहीं पाओगे तुम अब जरूरी तो नहीं न हर लिपि की जानकारी ...
बहादुर बेटी का अभियान गीत ...आनन्द विश्वास नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी। बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी। बेटी-युग में बेटा-बेटी, सभी पढ़ेंगे, सभी बढ़ेंगे। फौलादी ले नेक ...
अगर चीनी नहीं,किस काम की ये चायपत्ती है। कई मेहमान घर में देखकर माँ हक्की-बक्की है । मैं हूँ मज़दूर, मेरी क़ब्र पर ये संगमरमर क्यों , मेरा हर ख़्वाब मिट्टी था, मेरी पहचान मिट्टी है । दिखी अनमोल सी ...
मुट्ठी से सरकते यादों के रेत, याद दिला जाते है अक्सर, वो महुए के पेड़ और केले के खेत, जहाँ हम रोज मिला करते थे, तुम्हारी वो बातें और कोयल कि कू कू का, कमोबेश एक सा ही प्रभाव , कानों में मिसरी घोल जाती ...
माँ! तब मैं बच्चा था जब तुम गोद में लेकर सुनाती थी लोरी माँगती थी चंदा मामा से दूध भरी कटोरी और पिलाती थी अक्षय-कोष से अमृत। कई दशक हो गए गुज़रे उस समय को, आज मैं हो गया हूँ बड़ा तुम हो गई ...
इतना करीब आ के' वो' नूरे नज़र गया । कमरा ये मेरे जिस्म का' खुशबू से' भर गया ।। वो इक झलक में' रूह में' ऐसे उतर गया । जैसे गुबार-ए-रौशनी' शब में बिखर गया ।। कैसी दवा है' हुस्न,नशा दौलत-औ-हुनर(दौलतो ...
मैं था आशिक सच्चा तूने ना पहचाना साथ रह के भी तूने मुझे अपना कभी ना माना काश तू देख पाती मेरे प्यार की गहराई सुन पाती वो सारी बातें जो मैंने दिल में थी दबाई खैर अब वो सब कुछ खो गया हमारा ...
1) फितरत ही मुझ ग़रीब की कुछ ऐसी है ना पल पल बदलता मौसम अच्छा लगता है ना पल पल बदलता इंसान 2 )इस दुनिया से नहीं है वास्ता मेरा कोई ग़ुरबत में मेरी ज़िन्दगी का मज़ा है ना छोड़ने के लिए मजबूर है ज़िन्दगी ...
१. खुशियाँ बिखरीं घर आँगन में सखियां सब दीपक देख रहीं । छवि देख पिया सखि दीपक में शरमाय रहीं छुप जायँ कहीं । कर पूजन दीप जला कर के अब द्वार चलीं मुसकाय रहीं । सब खेलत संग मचा हुड़दंग लगे उनको कछु लाज ...
प्रेमिकाएँ प्रेम नहीं करतीं थीं दूसरे कई काम करती थीं दिन भर प्रेम न करने वाली स्त्रियों सी शांत, संयत दिख पाने में विफल होकर व्याकुल रहती थीं सोचतीं रहतीं कि कैसे इस पार उतरते ही सब कश्तियाँ जला दीं ...
देख रही हूँ , नन्हीं बूँदों को सागर बनते हुए , निखरते हुए , किसी के दुःख में , किसी की मुस्कान में देख रही हूँ बूँदों को ''बारिश के मकान '' में . . . . . देख रही हूँ , बूँदों के असीम संसार को हर गली ...
मुझसे प्यार है यही कहा था न तुमने? तुम्हारे शब्द आज भी गूंज रहे हैं मेरे कानों में, जनाब तुम प्यार को सही से परिभाषित नहीं कर पाए, बस कह दिया तुमने कि तुमसे प्यार है ......!! शायद कहना भूल गए होगे ...